उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर का निर्माण परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास कराया था। सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने सन 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया...
नागों को पूजने की रही है परंपरा
नाग भगवान शिव का आभूषण हैं। इसलिए उन्हें भी पूज्यनीय माना गया है। परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। ऐसे में भारत में कई स्थानों पर नाग देवता का मंदिर देखा जा सकता है। इसी में से एक है उज्जैन का नाग चंद्रेश्वर मंदिर। यह मंदिर प्रसिद्ध महाकाल मंदिर (mahakaal mandir) के तीसरी मंजिल पर स्थित है। जहां के बारे में मान्यता है कि नागराज तक्षक यहां स्वयं विराजमान रहते हैं। लेकिन, यह मंदिर वर्ष में एक बार केवल नाग पंचमी तिथि ((श्रावण शुक्ल पंचमी) को ही खुलता है। इस दिन यहां दर्शन के भक्तों की लंबी लाइन लगती है।
दसमुखी शय्या पर विराजमान हैं भोलेनाथ
उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान भोलेनाथ की दुर्लभ और अद्भुत प्रतिमा है। जिसमें भगवान भोलेनाथ भगवान विष्णु की तरह दसमुखी सर्प शय्या पर माता पार्वती और विघ्नहर्ता श्रीगणेश के साथ विराजमान हैं। प्रतिमा में शिव के गले और भुजा में सर्प लिपटे हैं। यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा पड़ोसी देश नेपाल से यहां लाई गई है। पूरे भारतवर्ष में ऐसी कोई दूसरी प्रतिमा नहीं मिलती है।
नाग चंद्रेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार नागराज तक्षक ने भगवान भोलेनाथ की कठिन तपस्या की। जिस पर भोलेनाथ ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से नागराज तक्षक भगवान शिव की शरण में वास करने लगे। लेकिन, महाकाल के वन में वास से पूर्व उनकी मंशा थी कि उनके एकांतवास में विघ्न न हो। मान्यता है कि इसी परंपरा का निर्वहन है कि मंदिर वर्ष में केवल एक बार ही खुलता है। यहां दर्शन मात्र से कालसर्प व अन्य सर्प दोष से व्यक्ति मुक्त हो जाता है।
राजा भोज ने कराया था मंदिर का निर्माण
उज्जैन का महाकाल मंदिर अति प्राचीन है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1050 ईस्वी में परमार राजा भोज ने कराया था। वहीं, सन 1732 में सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। उसी समय नाग चंद्रेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था।
दो लाख से ज्यादा भक्त करते हैं दर्शन
नाग चंद्रेश्वर मंदिर में नाग पंचमी के दिन दो लाख से भी ज्यादा भक्त दर्शन करते हैं। नाग पंचमी तिथि लगने वाली रात 12 बजे मंदिर के कपाट खुलते ही दर्शन का क्रम शुरू हो जाता है, जो नाग पंचमी तिथि की समाप्ति वाली रात 12 बजे तक चलता है। मंदिर का कपाट बंद होने से पहले आरती होती है। यहां पूजा व अन्य व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़ा करता है। महाकाल और नाग चंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन की अलग-अलग व्यवस्था होती है। नाग पंचमी की दोपहर में कलेक्टर पूजा करते हैं। यह परंपरा रियासत काल से प्रचलन में है। रात आठ बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति की ओर पूजा होती है।
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